LMNT: निदान और उपचार की कुछ अनूठी विशेषताएं
Acharya Ramchandran S.
International Neurotherapy Consultant
Last Modified: October 25, 2023
यह विषय पिछले सप्ताह से जारी है…
यह सर्व विदित है कि प्रत्येक थेरेपी के अपने अनूठे प्लस पॉइंट होते हैं जो उसे अन्य थेरेपी से अलग बनाने में योगदान देते हैं. अगले कुछ अंकों में हम उन तथ्यों पर प्रकाश डालेंगे जो न्यूरोथेरेपी यानी LMNT की विशिष्टता को दर्शाते हैं. इसमें वाचक गण से क्षमा चाहता हूं कि लेख में कुछ-कुछ जगह पर टेक्निकल शब्दों का उपयोग करना जरूरी पड रहा है । अगर किसी को समझने में कोई दिक्कत आती है तो कृपया व्हाट्सएप पर संपर्क कर और विस्तृत रूप से जानकारी प्राप्त सकते हैं।
मूल रूप से देखा जाए तो हम न्यूरोथेरेपी में क्या करते हैं? हम कुछ विशिष्ट क्रम में कुछ खास जगहों पर विशिष्ट समय के लिए दवाब देते हैं और छोड़ते हैं. फिर पाठक के मन में यह प्रश्न आएगा कि क्या यह दबाव किसी भी सीक्वेंस में किया जा सकता है ? तो हमारा जवाब है कि यह दबाव किसी भी रेंडम सीक्वेंस (random sequence) में नहीं किया जा सकता है. इसके लिए कुछ विशिष्ट रूल्स (specific rules) को फॉलो करना पड़ता है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो दबाव का प्रयोग किसी भी यादृच्छिक क्रम में नहीं किया जा सकता है। तो उन नियमों के बारे में नीचे समझता हूं.
उचित peristaltic movement (क्रमाकुंचन गति) के लिए सामान्य नियम इस प्रकार है: दायाँ बाएँ के बाद आता है (right follows left) – यानी, पहले नाभि के दाईं ओर के अंगों को उत्तेजित करें और फिर नाभि के बाईं ओर के अंगों को उत्तेजित करें। अब आप पूछेंगे कि ऐसा क्यों? तो इसका सीधा-सीधा उत्तर मानव शरीर की फिजियोलॉजी से प्राप्त होता है। मतलब फिजियोलॉजी कहता है कि हमारे शरीर का peristaltic movement – यानी भोजन को आगे धकेलने की गति जो है – वह असेंडिंग कोलन से लेकर डिसेंडिंग कोलन की ओर होता है । असेंडिंग कोलन हमारे शरीर के दाहिने side में है और डिसेंडिंग कोलन शरीर के बाई side में है. जब हम neuro therapy का उपचार देते हैं तो हमें शरीर के दाहिनी भाग को पहले उकसाना चाहिए और बाई भाग को बाद में उकसाना चाहिए । इसीलिए ही इसे हम सामान्य नियम कहते हैं। और इसका समर्थन हमारे अवलोकन से भी प्राप्त है कि अगर क्रम को उल्टा किया जाए – यानि अगर शरीर के बाई साइड को पहले उकसाकर बाद में दाहिने साइड को उकसाने से – तो रोगियों में कब्जी होता हुआ देखा गया है.
[ यहां पर “उत्तेजित करने” का मतलब है शरीर में जगह-जगह पर खास क्रमों में खास प्रकार का दबाव देकर उन अंगों की ओर रक्त संचार को बढ़ा देना – जो न्यूरो थेरेपी उपचार पद्धति की एक विशेषता है. ]
फिर अगला प्रश्न मन में आएगा की क्या यही क्रम – यानी राइट पहले और लेफ्ट बाद में – सभी व्यक्तियों के लिए लागू होगा? तो जवाब है कि सभी व्यक्तियों के लिए एक ही क्रम होगा ऐसा नहीं है. इसका कारण यह है कि न्यूरोथेरेपी में हमेशा व्यक्ति की प्रकृति यानी कॉन्स्टिट्यूशन को ध्यान में रखकर ही उपचार दिया जाता है। इसीलिए उल्टा क्रम हम तब ही देते हैं जब हम क्रमाकुंचन (peristaltic movement) को रोकना चाहते हैं, उदाहरण के लिए, दस्त का इलाज करते समय। यानी अगर व्यक्ति को किसी दिन दस्त हो रहा हो तो उस दिन हमारा क्रम होगा की पहले नाभि के बाई ओर के अंगों को उत्तेजित करेंगे और फिर नाभी के दाहिनी ओर के अंगों को. इस प्रकार करने से दस्त में बहुत लाभ मिलता हुआ देखा गया है. है ना यह एक विचित्र और अनोखी सोच?
पर इसमें कोई विचित्रता की बात नहीं है. ऐसा इसलिए करना पड़ता है क्योंकि जैसे ऊपर कहा गया है, इस चिकित्सा पद्धति के अनेक तथ्य फिजियोलॉजी के ऊपर आधारित हैं. आमतौर पर, हमारा नॉर्मल पेरीस्टाल्टिक मूवमेंट एसेंडिंग कोलन से डिसेंडिंग कोलन की ओर होता है. इस कारण जब दस्त लग जाते हैं उसमें शरीर के अंदर जो अवशेष पदार्थ है उसको तेजी से डिसेंडिंग कोलन की ओर धकेल दिया जाता है जिसे ही हम लूज मोशन कहते हैं। तो उल्टा कम इसीलिए लाभ देता है क्योंकि हमारे उपचार से पेरीस्टाल्टिक मूवमेंट को लगाम लगाया जाता है जिससे कि पेशेंट को दस्त से तुरंत ही लाभ प्राप्त हो जाता है और वह भी बिना दवाई दिए हुए लिए हुए!
अभी अगले मुद्दे पर आते हैं.
जैसे आयुर्वेद में वात-पित्त-कफ ऐसे तीन प्रकार की प्रकृति माने जाते हैं वैसे ही न्यूरोथेरेपी में मनुष्य के कॉन्स्टिट्यूशन तीन प्रकार की प्रवृत्ति का माना जाता है जिसे हम कहते हैं “एसिड, अल्कली, एवं Gas”. और हमने देखा है की बीमारी चाहे कुछ भी हो इन तीनों प्रकार की प्रवृत्तियों के अनुसार नाभि के इर्द-गिर्द कुछ खास प्वाइंट्स पर दर्द महसूस होता है. इन में मुख्य है अम्लीय ता एवं क्षार प्रकृति. पिछले छह दशकों में हजारों मरीजों के ऊपर अवलोकन के बाद डॉक्टर मेहरा जी डंके की चोट पर कहते हैं की यह दोनों प्रकृतियो में नाभि के इर्द-गिर्द दर्द एक जैसा नहीं होता एवं यह दर्द के साथ-साथ विपरीत लक्षणों से भी जुड़ा होता देखा गया है
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